इकरार नहीं होता


इन्कार   नहीं   होता   इकरार  नहीं  होता
कुछ भी तो यहाँ दिल के अनुसार नहीं होता

लेगी मेरी मोहब्बत अंगड़ाई तेरे दिल में
कोई भी मोहब्बत से बेज़ार नहीं होता

अब शोख़ अदाओं का जादू भी चले दिल पर
ऐसे   तो   दिलबरों का   सत्कार नहीं होता

कैसे भुला दूँ, तुझसे, मंज़र वो बिछड़ने का
एहसास   ज़िन्दगी  का हर बार नहीं होता

सुनकर सदायें दिल की फ़ौरन ही चले आना
अब और   नदीश  हमसे इसरार नहीं होता

रेखाचित्र साभार : अनु प्रिया जी

तो ग़ज़ल कहूँ


रुख़ से ज़रा नक़ाब उठे तो ग़ज़ल कहूँ,
महफ़िल में इज़्तिराब उठे तो ग़ज़ल कहूँ

इस आस में ही मैंने खराशें क़ुबूल की,
काँटों से जब गुलाब उठे तो ग़ज़ल कहूँ

छेड़ा है तेरी याद को मैंने बस इसलिए
तकलीफ बेहिसाब उठे तो ग़ज़ल कहूँ

अँगड़ाइयों को आपकी मोहताज है नज़र
सोया हुआ शबाब उठे तो ग़ज़ल कहूँ

दर्दों की इंतिहा से गुज़र के जेहन में जब
जज्बों का इन्किलाब उठे तो ग़ज़ल कहूँ

तारे समेटने के लिए शोख़ फ़लक से
धरती से माहताब उठे तो ग़ज़ल कहूँ

ठहरी है ग़म की झील में आँखें नदीश की
यादों का इक हुबाब उठे तो ग़ज़ल कहूँ

चित्र साभार: गूगल