दर्द कोई बोलता हुआ

ये तेरी जुस्तजू से मुझे तज़ुर्बा हुआ
मंज़िल हुई मेरी न मेरा रास्ता हुआ

खुशियों को कहीं भी न कभी रास आऊँ मैं
हाँ सल्तनत में दर्द की ये फैसला हुआ

मिट ना सकेगा ये किसी सूरत भी अब कभी
नज़दीकियों के दरम्यान जो फासला हुआ

जब से खँगालने चले तहखाने नींद के
अश्क़ों की बगावत में ख़्वाब था डरा हुआ

अक्सर ये सोचता हूँ क्या है मेरा वज़ूद
मैं एक अजनबी से बदन में पड़ा हुआ

थी ज़िंदगी की कश्मकश कि होश गुम गए
कहते हैं लोग उसको कि वो सिरफिरा हुआ

है मेरा अपना हौसला परवाज़ भी मेरी
मैं एक परिन्दा हूँ मगर पर कटा हुआ

मजबूरियों ने मेरी न छोड़ा मुझे कहीं
मत पूछना ये तुझसे मैं कैसे जुदा हुआ

अब थम गया नदीश तेरी ख़िल्वतों का शोर
हाँ मिल गया है दर्द कोई बोलता हुआ
रेखाचित्र-अनुप्रिया

9 comments:

  1. वाह्ह्ह..क्या बात..लाज़वाब👌

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत शुक्रिया

    ReplyDelete
  3. वाह !!!
    बहुत ही सुन्दर गजल...

    ReplyDelete
  4. जी आदरणीया जरूर आऊँगा
    बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  5. है मेरा अपना हौसला परवाज़ भी मेरी
    मैं एक परिन्दा हूँ मगर पर कटा हुआ
    बहुत ख़ूब !आभार। "एकलव्य"

    ReplyDelete
  6. जीवन के विविध रूप प्रस्तुत करती सुंदर रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद

      Delete