शायद तुम नहीं जानती

शायद तुम नहीं जानती
मैंने रोक रक्खा है पलकों के भीतर
आंसुओं के समंदर में 
उठने वाले ज्वार को
बनाकर यादों का तटबंध
कुछ लहरें फिर भी
तोड़ देती हैं तटबंध
और तन्हाई के साहिल पे
छोड़ जाती हैं नमक के किरचे
जो चुभ जाते हैं
सुकून के पाँव में
और सुनाई देती है
करीब आते दर्द की आहट
कुछ तस्वीरें दर्द की
खींच कर वक्त ने
टंगा दी हैं
दिल की दीवार पे
ठोक के एहसास की कीलें
जो चुभती हैं हर सांस की जुंबिश पर
फिर रो पड़ते हैं ख़्वाब मोहब्बत के
और भिगो देते हैं
पलकों की कोरों को
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आँखों की दहलीज़ पे 
बैठे कुछ ख़्वाब,
कब से राह देख रहे हैं नींद की
और नींद भटक रही है
यादों के सहरा में
सुकून के जुगनुओं का
पीछा करते हुए...
ज़िद पे अड़ी थी नींद
आँखों की तलाशी लेने
और मिला क्या
कुछ सुबकते हुए ख़्वाब
चंद धुंधली सी तश्वीरें
एक दरिया अश्कों का
जिसमें तैरती
अरमानों की लाशें
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