लोकराग
आईना
आईने में देखता हूँ खुद को
और मुझे तुम नज़र आते हो
सोच में पड़ जाता हूँ
क्योंकि
आईना पारदर्शी नहीं होता
फिर ये कैसे संभव है
सोचता हूँ फिर
तुम्हारे प्रेम में
कहीं मैं ही तो
पारदर्शी नहीं हो गया
जब भी देखता हूँ आईना
तुम ही नज़र आते हो
चित्र साभार- गूगल
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment